On a cold winter night
after a late evening shower
I was walking home
alone, with the usual unwanted burden
that I like to carry
Suddenly she landed upon me
losing herself in that moment
shedding all her burdens of tomorrow
surrendering submitting
to the happiness of now.
The big drop ..
Boond..
Saturday, December 19, 2009
Thursday, December 10, 2009
Udaan-II
यूँहीं एक दिन, खाली बैठे, कागज़ पे कुछ बनाया था
कुछ आड़ी-तिरछी रेखाओं से कुछ मन का हिसाब लगाया था
कुछ आकांक्षाएँ थीं, जिन्हें नापकर कम किया था
कुछ खुले हुए घावों को समय की तार से सीया था
कुछ यादों को जमा घटा किया
थोडा किसी कड़वे सच को पिया
सब नाप तौलकर समझ लिया
फिर एक नया रंग लिया
कुछ बादलों में रुई भर दी आखिर
उन्हें एक आकाश के लिए स्वतंत्र किया
कुछ अभिलाषाओं के अर्थ को
और थोड़े से यथार्थ को
लेकर सोचा अब निकल पडूँ
बहुत दूर से देख चुकी,
क्या मैं भी आज,
इस नभ में उडूँ?
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