खुरच खुरच कर यादों से ,
क्यूँ दुःख ही बस चुनते हैं
क्यूँ कभी उस बेहिचक सी,
स्वछंद हंसी की
खिलखिलाहट को नहीं सुनते हैं
किसी की बंधी सोच से ,
हम क्यूँ बंध जाते हैं
किसी के अहम् की क्षुधा को
क्यूँ अपने आसुओं से बुझाते हैं
अपने परों पे उड़ना
अपनी राहों पे मुड़ना
अपने रंगों की बूंदों से
अपने जीवन चित्र को बुनना
यह अहंकार नहीं
मेरा अधिकार है
मेरी हर परिभाषा
मेरे सपनों की हर उड़ान का आधार है
उड़ान