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Thursday, December 10, 2009

Udaan-II

यूँहीं एक दिन, खाली बैठे, कागज़ पे कुछ बनाया था
कुछ आड़ी-तिरछी रेखाओं से कुछ मन का हिसाब लगाया था
कुछ आकांक्षाएँ थीं, जिन्हें नापकर कम किया था
कुछ खुले हुए घावों को समय की तार से सीया था
कुछ यादों को जमा घटा किया
थोडा किसी कड़वे सच को पिया
सब नाप तौलकर समझ लिया
फिर एक नया रंग लिया
कुछ बादलों में रुई भर दी आखिर
उन्हें एक आकाश के लिए स्वतंत्र किया
कुछ अभिलाषाओं के अर्थ को
और थोड़े से यथार्थ को
लेकर सोचा अब निकल पडूँ
बहुत दूर से देख चुकी,
क्या मैं भी आज,
इस नभ में उडूँ?

2 comments:

Jipsy Misanthrope said...

"अपनी उड़ान के साये में
कुछ अपने, कुछ परायों में
आज हम उँचे नभ में देखें
क्या सोच होगी उन हवाओं में?"

--- सार्थक सोच के सार्थक आयाम ---

sankalp2310 said...

कुछ बादलों में रुई भर दी आखिर
उन्हें एक आकाश के लिए स्वतंत्र किया
.....laajaawaab!!! behtareen!!!!!